Swiggy और Zomato ने बढ़ाई फूड डिलीवरी कीमतें: ग्राहकों पर असर 2025

Swiggy और Zomato ने बढ़ाई फूड डिलीवरी कीमतें: ग्राहकों पर असर 2025
2025 में फूड डिलीवरी की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं? swiggy zomato आप अकेले नहीं हैं। Swiggy और Zomato दोनों ने अपनी डिलीवरी चार्ज और प्लेटफॉर्म फीस में काफी इजाफा किया है।
यह गाइड उन लाखों भारतीयों के लिए है जो रोजाना ऑनलाइन फूड ऑर्डर करते हैं – चाहे आप ऑफिस गोअर हों, कॉलेज स्टूडेंट हों, या घर बैठे खाना मंगवाने वाले परिवार हों।
इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि क्यों बढ़ाई गई हैं ये कीमतें और इसके पीछे की नई प्राइसिंग रणनीति क्या है। साथ ही देखेंगे कि अलग-अलग ग्राहकों पर क्या असर पड़ रहा है – स्टूडेंट्स से लेकर फैमिलीज तक। अंत में बात करेंगे बाजार में मिल रहे वैकल्पिक समाधानों की और ग्राहक इन बदलावों का कैसे जवाब दे रहे हैं।
फूड डिलीवरी कीमतों में वृद्धि के कारण
बढ़ते ऑपरेशनल खर्चे और ईंधन की कीमतें
फूड डिलीवरी कंपनियों के लिए सबसे बड़ी समस्या बढ़ते ऑपरेशनल कॉस्ट हैं। पिछले दो सालों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं, जिससे डिलीवरी की लागत काफी बढ़ गई है। Swiggy और Zomato के डिलीवरी पार्टनर्स दिन भर अपने वाहनों से ऑर्डर डिलीवर करते हैं, और ईंधन की बढ़ती कीमतें सीधे तौर पर इनके बिजनेस मॉडल को प्रभावित करती हैं।
डिलीवरी के दौरान होने वाला वाहन मेंटेनेंस, पार्किंग फीस, और टोल चार्जेस भी लगातार बढ़ रहे हैं। शहरों में ट्रैफिक की बढ़ती समस्या के कारण डिलीवरी टाइम भी बढ़ा है, जिससे प्रति ऑर्डर की कॉस्ट और भी ज्यादा हो गई है। Technology infrastructure की मेंटेनेंस, app development, और server costs भी साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं।
डिलीवरी पार्टनरों की सैलरी और इंसेंटिव में बढ़ोतरी
कंपेटिशन के कारण डिलीवरी पार्टनरों को attract करने के लिए दोनों कंपनियां बेहतर incentives देने पर मजबूर हैं। पहले जो डिलीवरी बॉय 15-20 रुपये प्रति ऑर्डर कमाते थे, अब उन्हें 25-35 रुपये तक मिल रहे हैं। Peak hours में तो ये rates और भी ज्यादा हो जाते हैं।
साथ ही, labor laws में बदलाव और gig workers के rights को लेकर बढ़ती जागरूकता के कारण कंपनियों को बेहतर benefits देने पड़ रहे हैं। Health insurance, accident coverage, और performance bonuses अब जरूरी हो गए हैं। Festival seasons में extra incentives देना भी एक नई trend बन गई है।
Quality delivery maintain करने के लिए experienced डिलीवरी पार्टनर्स को retain करना जरूरी है, जिसके लिए competitive packages देने पड़ते हैं।
महंगाई दर और इन्फ्लेशन का प्रभाव
देश भर में बढ़ती महंगाई का सीधा असर food delivery sector पर भी पड़ा है। रेस्टोरेंट्स अपनी menu prices बढ़ा रहे हैं क्योंकि raw materials की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। Vegetables, oil, spices, और packaging materials सब महंगे हो गए हैं।
Office spaces की rent, electricity bills, और staff salaries में भी इजाफा हुआ है। Customer support team, quality assurance, और marketing की costs भी inflation के साथ बढ़ रही हैं। Banking और payment processing fees में भी वृद्धि हुई है।
Global supply chain में disruption के कारण technology equipment और software licenses भी महंगे हो गए हैं। इन सभी factors का combined effect यह है कि कंपनियों को अपने service charges बढ़ाने पड़ रहे हैं।
RBI की monetary policy और interest rates में बदलाव भी इन कंपनियों की funding costs को प्रभावित करते हैं, जिससे operational expenses और भी बढ़ जाते हैं।
Swiggy और Zomato की नई प्राइसिंग रणनीति
डिलीवरी चार्जेस में की गई वृद्धि
फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स ने अपने डिलीवरी चार्जेस में काफी बदलाव किए हैं। Swiggy ने कम दूरी की डिलीवरी के लिए ₹15-25 से बढ़ाकर ₹25-35 कर दिया है, जबकि लंबी दूरी के लिए चार्जेस ₹40-60 तक पहुंच गए हैं। Zomato भी इसी राह पर चलते हुए अपने बेस डिलीवरी चार्ज को ₹20 से बढ़ाकर ₹30-40 कर चुका है।
दूरी के आधार पर नए चार्जेस:
- 0-3 km: ₹25-35 (पहले ₹15-25)
- 3-5 km: ₹35-45 (पहले ₹25-35)
- 5+ km: ₹45-60 (पहले ₹35-50)
यह बढ़ोतरी खासकर छोटे ऑर्डर्स को ज्यादा प्रभावित कर रही है, जहां डिलीवरी चार्ज कुल बिल का 20-30% तक हो जाता है।
सर्विस फीस और कन्वीनियंस चार्ज में बदलाव
दोनों प्लेटफॉर्म्स ने अपनी सर्विस फीस स्ट्रक्चर में अहम बदलाव किए हैं। Swiggy की प्लेटफॉर्म फीस अब ₹4-8 हो गई है, जो पहले ₹2-5 थी। Zomato भी अपने कन्वीनियंस चार्ज को ₹3-6 तक बढ़ा चुका है।
नई फीस स्ट्रक्चर:
फीस टाइप | Swiggy (नया) | Zomato (नया) | पुराना रेट |
---|---|---|---|
प्लेटफॉर्म फीस | ₹4-8 | ₹3-6 | ₹2-5 |
पैकेजिंग चार्ज | ₹5-12 | ₹4-10 | ₹3-8 |
GST | 5% | 5% | 5% |
इन छोटी-छोटी फीस की वजह से हर ऑर्डर पर अतिरिक्त ₹10-20 का बोझ पड़ रहा है।
सर्ज प्राइसिंग और डायनामिक प्राइसिंग का इस्तेमाल
पीक आवर्स और मौसम की खराबी के दौरान दोनों ऐप्स अब ज्यादा आक्रामक सर्ज प्राइसिंग लगा रहे हैं। बारिश के दिनों में डिलीवरी चार्जेस 50-100% तक बढ़ जाते हैं, जबकि शाम 7-9 बजे के पीक आवर्स में 30-50% अतिरिक्त चार्ज लगता है।
सर्ज प्राइसिंग के मुख्य कारक:
- मौसमी स्थितियां (बारिश, तेज धूप)
- त्योहारी सीजन और छुट्टियों के दिन
- पीक ऑर्डर टाइमिंग (लंच और डिनर)
- डिलीवरी पार्टनर्स की उपलब्धता
यह सिस्टम रियल-टाइम में काम करता है और ग्राहकों को तुरंत पता चल जाता है कि उनका ऑर्डर कितना महंगा होगा।
प्रीमियम मेंबरशिप प्लान्स में संशोधन
Swiggy One और Zomato Pro की कीमतों में भी इजाफा हुआ है। Swiggy One अब ₹149 प्रति माह (पहले ₹119) और ₹1499 सालाना (पहले ₹1199) हो गया है। Zomato Pro भी ₹129 मासिक से बढ़कर ₹179 हो गया है।
मेंबरशिप के नए फायदे और नुकसान:
- फ्री डिलीवरी की न्यूनतम ऑर्डर वैल्यू बढ़ी
- कुछ रेस्टोरेंट्स पर मेंबरशिप डिस्काउंट कम हुआ
- प्राइम टाइम पर भी सर्ज चार्जेस लग सकते हैं
- प्राथमिकता सपोर्ट और तेज डिलीवरी के नाम पर अधिक कीमत
इन बदलावों के बाद ग्राहकों को लगता है कि मेंबरशिप लेना उतना फायदेमंद नहीं रहा जितना पहले था।
ग्राहकों पर पड़ने वाला तत्काल प्रभाव
मासिक फूड ऑर्डरिंग बजट में बढ़ोतरी
Swiggy और Zomato की बढ़ी हुई कीमतों का सीधा असर लोगों के मासिक खर्च पर देखने को मिल रहा है। एक औसत शहरी परिवार जो महीने में 15-20 बार फूड ऑर्डर करता था, अब उसका बजट 20-25% तक बढ़ गया है। डिलीवरी चार्ज, प्लेटफॉर्म फीस, और टैक्स के साथ जो पहले 300 रुपए में आता था, वह अब 370-380 रुपए में पहुंच रहा है।
यंग प्रोफेशनल्स के लिए यह चुनौती और भी गंभीर है। Mumbai और Delhi जैसे महंगे शहरों में रहने वाले लोग अपने फूड बजट का बड़ा हिस्सा ऑनलाइन ऑर्डरिंग पर खर्च करते हैं। अब उन्हें अपनी मासिक योजना में 2000-3000 रुपए अतिरिक्त रखने पड़ रहे हैं।
छोटे ऑर्डर्स पर अधिक शुल्क का बोझ
सबसे ज्यादा परेशानी छोटे ऑर्डर करने वाले ग्राहकों को हो रही है। 200-300 रुपए के ऑर्डर पर कुल मिलाकर 60-80 रुपए तक अतिरिक्त शुल्क लग रहा है। यह स्थिति छोटे हिस्सों में खाना मंगाने वाले एकल व्यक्तियों के लिए काफी महंगी साबित हो रही है।
ऑर्डर साइज़ | पहले कुल शुल्क | अब कुल शुल्क | वृद्धि प्रतिशत |
---|---|---|---|
150-250 रुपए | 25-35 रुपए | 45-65 रुपए | 75-80% |
300-450 रुपए | 35-45 रुपए | 55-70 रुपए | 55-60% |
500+ रुपए | 40-50 रुपए | 60-75 रुपए | 45-50% |
छोटे शहरों में रहने वाले स्टूडेंट्स और कम आय वाले लोग इस बदलाव से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। उनके लिए अब एक साधारण स्नैक या छोटा मील भी काफी महंगा हो गया है।
कम आर्डर फ्रीक्वेंसी की संभावना
बढ़ती कीमतों का तुरंत असर ऑर्डरिंग की आवृत्ति पर दिखाई दे रहा है। कई ग्राहक अब हफ्ते में 4-5 बार के बजाय 2-3 बार ही ऑर्डर कर रहे हैं। कुछ लोग बल्क ऑर्डरिंग की तरफ मुड़ रहे हैं – यानी एक ही बार में पूरे परिवार के लिए या दो-तीन मील एक साथ ऑर्डर करना।
Office workers में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है जहां वे ग्रुप ऑर्डरिंग कर रहे हैं ताकि डिलीवरी और प्लेटफॉर्म फीस बांटी जा सके। Weekend ordering भी काफी घट गई है क्योंकि लोग अब सिर्फ जरूरी समय पर ही ऑनलाइन फूड मंगाने का फैसला कर रहे हैं।
कई ग्राहक अब पहले से ही तय कर लेते हैं कि महीने में कितनी बार ऑर्डर करना है, और उस हिसाब से अपना बजट बनाते हैं। यह spontaneous ordering की आदत को प्रभावित कर रहा है जो इन प्लेटफॉर्म की मुख्य शक्ति थी।
विभिन्न ग्राहक समूहों पर अलग-अलग असर
मध्यम वर्गीय परिवारों पर वित्तीय दबाव
बढ़ती फूड डिलीवरी कीमतों का सबसे ज्यादा नुकसान मध्यम वर्गीय परिवारों को हो रहा है। जो परिवार पहले हफ्ते में 3-4 बार ऑर्डर करते थे, वे अब महीने में केवल एक-दो बार ही मंगवा रहे हैं। एक सामान्य परिवार के लिए चार लोगों का खाना मंगवाना अब 600-800 रुपए का काम हो गया है, जो पहले 400-500 में हो जाता था।
मध्यम वर्गीय घरों में घर की औरतें अब पहले से ज्यादा खुद खाना बनाने पर मजबूर हैं। जो माताएं अपने बच्चों को खुश करने के लिए वीकेंड पर पिज्जा या बर्गर मंगवाती थीं, वे अब घर पर ही इन चीजों को बनाने की कोशिश कर रही हैं। यह बदलाव सिर्फ पैसे की बात नहीं है, बल्कि पूरी लाइफस्टाइल को प्रभावित कर रहा है।
युवाओं और प्रोफेशनल्स की ऑर्डरिंग हैबिट्स में बदलाव
कामकाजी युवाओं की दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है। जो युवा रोज रात का खाना ऑर्डर करते थे, वे अब हफ्ते में 2-3 बार ही मंगवा रहे हैं। बहुत से प्रोफेशनल्स ने अब meal prep करना शुरू कर दिया है – यानी रविवार को ही पूरे हफ्ते का खाना बना लेते हैं।
टेक कंपनियों में काम करने वाले युवा, जो पहले रात 10-11 बजे आसानी से खाना मंगवा लेते थे, अब office के canteen पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं। कई लोग अपने दोस्तों के साथ मिलकर group ordering करने लगे हैं ताकि delivery charges कम पड़ें।
Bangalore और Gurgaon जैसे शहरों में रहने वाले युवा professionals अब local dhabas और छोटे restaurants को फिर से explore कर रहे हैं। वे direct pickup करके delivery charges बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
बुजुर्गों और सीनियर सिटिजन्स पर प्रभाव
सीनियर सिटिजन्स के लिए यह समस्या और भी गंभीर है। बहुत से बुजुर्ग जो अकेले रहते हैं या जिनकी cooking capacity कम है, वे food delivery पर काफी निर्भर थे। बढ़ी कीमतों की वजह से वे अब महंगे subscription plans लेने पर मजबूर हैं या फिर अपने परिवार पर ज्यादा निर्भर होना पड़ रहा है।
जिन बुजुर्गों को diabetes या heart problems हैं और उन्हें specific diet की जरूरत होती है, वे अब healthy food options order करने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि ये वैसे भी महंगे होते हैं। कई seniors अब अपने बच्चों से कह रहे हैं कि वे महीने में एक-दो बार घर आकर खाना बना जाएं।
स्टूडेंट्स के लिए बढ़ी चुनौतियां
College students की हालत सबसे खराब है। जिनकी monthly pocket money पहले से ही limited है, वे अब food delivery luxury समझने लगे हैं। बहुत से students group में रहकर cooking करना सीख रहे हैं या फिर hostel mess पर ज्यादा depend हो रहे हैं।
Delhi University, JNU जैसी जगहों पर students अब canteen और street food vendors को preference दे रहे हैं। जो students पहले exams के दौरान रात को पढ़ाई करते समय खाना order करते थे, वे अब Maggi और biscuits से काम चला रहे हैं।
कई engineering colleges के students ने अपने दोस्तों के साथ cooking groups बना लिए हैं। वे turn-by-turn खाना बनाते हैं और cost share करते हैं। यह trend particularly North India के colleges में ज्यादा देखने को मिल रहा है।
बाजार में वैकल्पिक समाधान और ग्राहक प्रतिक्रियाएं
स्थानीय रेस्टोरेंट्स की डायरेक्ट डिलीवरी सेवाओं की ओर रुख
बढ़ती डिलीवरी फीस के कारण लोग अब स्थानीय रेस्टोरेंट्स की खुद की डिलीवरी सेवाओं का फायदा उठा रहे हैं। पिछले छह महीनों में छोटे रेस्टोरेंट्स ने अपनी खुद की डिलीवरी टीम बनाना शुरू किया है। मुंबई के अंधेरी इलाके में एक पिज़्ज़ा शॉप के मालिक राहुल गुप्ता बताते हैं कि उनके डायरेक्ट ऑर्डर्स 40% बढ़ गए हैं क्योंकि ग्राहकों को कम कीमत मिल रही है।
WhatsApp और टेलीग्राम के जरिए रेस्टोरेंट्स अपने मेन्यू शेयर कर रहे हैं। दिल्ली के करोल बाग़ में 25 से ज्यादा रेस्टोरेंट्स ने मिलकर एक कॉमन व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है जहाँ लोग बिना किसी एक्स्ट्रा चार्ज के ऑर्डर कर सकते हैं। इस तरह की पहल खासकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में तेज़ी से फैल रही है।
मेट्रो शहरों में भी छोटे डार्क किचन्स ने अपनी वेबसाइट्स और ऐप्स लॉन्च किए हैं। गुरुग्राम की एक कैटरिंग कंपनी के मैनेजर अमित शर्मा का कहना है कि उनके कस्टमर्स अब सीधे फोन करके ऑर्डर देते हैं और पैसे बचाते हैं।
कुकिंग और होम फूड की बढ़ती प्राथमिकता
महंगी डिलीवरी फीस ने लोगों को किचन की तरफ वापस जाने पर मजबूर किया है। YouGov की रिसर्च के मुताबिक 60% लोगों ने घर में खाना बनाने की आवृत्ति बढ़ा दी है। YouTube पर कुकिंग चैनल्स की व्यूज़ 35% बढ़ी हैं और खाना बनाने के एक्सेसरीज़ की बिक्री भी तेज़ हुई है।
होम चेफ्स का कारोबार भी फल-फूल रहा है। बेंगलुरु में रहने वाली प्रिया मिश्रा अपने अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में होममेड खाना सप्लाई करती हैं। वे बताती हैं कि पिछले चार महीनों में उनके कस्टमर्स दोगुने हो गए हैं। लोग फ्रेश, हेल्दी और सस्ता खाना चाहते हैं।
होम कुकिंग के फायदे जो लोग देख रहे हैं:
- 50-70% तक पैसे की बचत
- हेल्दी और फ्रेश खाना
- अपनी पसंद के अनुसार टेस्ट
- फैमिली टाइम की वापसी
इंस्टाग्राम और फेसबुक पर “होम चेफ नेटवर्क” जैसे ग्रुप्स तेज़ी से बढ़ रहे हैं जहाँ लोग एक-दूसरे से खाना ऑर्डर करते हैं।
सोशल मीडिया पर ग्राहकों की नकारात्मक प्रतिक्रियाएं
Twitter, Instagram और Facebook पर #BoycottSwiggy और #ZomatoScam जैसे हैशटैग्स ट्रेंड कर रहे हैं। रोज़ाना हज़ारों पोस्ट्स शेयर हो रही हैं जिनमें लोग अपनी नाराज़गी जताते हैं। पुणे के एक IT प्रोफेशनल अनिल कुमार ने अपनी 150 रुपये की बिल का स्क्रीनशॉट शेयर करके दिखाया कि डिलीवरी चार्जेस, टैक्सेस और फीस मिलाकर टोटल 320 रुपये हो गया।
सोशल मीडिया पर सबसे कॉमन शिकायतें:
शिकायत का प्रकार | प्रतिशत |
---|---|
हाई डिलीवरी फीस | 45% |
छुपे हुए चार्जेस | 30% |
गुणवत्ता में कमी | 15% |
देर से डिलीवरी | 10% |
मीम्स और जोक्स के ज़रिए भी लोग अपना गुस्सा निकाल रहे हैं। “पहले खाना ऑर्डर करते थे, अब सैलरी ऑर्डर करनी पड़ती है” जैसे मीम्स वायरल हो रहे हैं। कई इन्फ्लुएंसर्स ने भी इन ऐप्स के खिलाफ़ कैंपेन चलाए हैं।
Reddit पर r/india और अन्य फोरम्स पर लगातार डिस्कशन हो रही है। लोग अल्टर्नेटिव्स सुझा रहे हैं और एक-दूसरे को पैसे बचाने के तरीके बता रहे हैं। चेन्नई के एक स्टूडेंट ने लिखा कि वो अब सिर्फ़ डायरेक्ट कॉल करके खाना मंगवाता है और महीने के 2000 रुपये बचाता है।

फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म की बढ़ती कीमतों का मतलब है कि अब ग्राहकों को अपनी खर्च करने की आदतों पर दोबारा विचार करना होगा। Swiggy और Zomato की नई प्राइसिंग रणनीति से अलग-अलग आर्थिक वर्गों के लोगों पर अलग-अलग तरीकों से प्रभाव पड़ा है। जबकि कुछ ग्राहकों के लिए ये बदलाव मामूली हैं, वहीं कई लोग अब कम ऑर्डर कर रहे हैं या फिर सीधे रेस्टोरेंट से खाना लेने जा रहे हैं।
इस स्थिति में सबसे अच्छा यह होगा कि आप अपने मासिक फूड डिलीवरी बजट को दोबारा सेट करें और जरूरत के हिसाब से ऑर्डर करें। कई वैकल्पिक डिलीवरी सर्विसेज भी मार्केट में आ रही हैं जो बेहतर दरें दे सकती हैं। अंत में, घर का खाना बनाना और सप्ताह में कुछ दिन खुद खाना पकाना भी एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।
1 thought on “swiggy zomato ने बढ़ाई फूड डिलीवरी कीमतें: ग्राहकों पर असर 2025”