Bharat Forecasting System in India भारत का फ़ोरकास्टिंग सिस्टम: भविष्य जानने की नई दिशा

भारत पूर्वानुमान प्रणाली: भारत की मौसम भविष्यवाणी का भविष्य
भारत पूर्वानुमान प्रणाली भारत की आधुनिक मौसम भविष्यवाणी तकनीक है Bharat Forecasting System in India जो किसानों, आपदा प्रबंधन टीमों और आम नागरिकों को सटीक मौसम जानकारी प्रदान करती है। यह प्रणाली भारत के विविध जलवायु क्षेत्रों में मौसम की भविष्यवाणी को अधिक सटीक बनाने में मदद करती है। हम इस लेख में भारत पूर्वानुमान प्रणाली के इतिहास, इसके प्रमुख घटकों और नवीनतम तकनीकी विकास के बारे में जानेंगे। साथ ही, हम इस प्रणाली के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर भी प्रकाश डालेंगे।
भारत पूर्वानुमान प्रणाली का इतिहास और विकास
भारतीय पूर्वानुमान की प्राचीन परंपराएँ
भारत में मौसम पूर्वानुमान की कला हजारों साल पुरानी है। हमारे पूर्वज कृषि के लिए मौसम को समझना जरूरी मानते थे। वेदों में खासकर ऋग्वेद में मौसम के पैटर्न का विस्तृत वर्णन मिलता है।
बादलों के आकार, पक्षियों के व्यवहार, और हवा की दिशा से हमारे किसान भाई बारिश का अनुमान लगाते थे। कृषि पंचांग ने फसल बोने का सही समय बताया।
पंचांग सिर्फ कैलेंडर नहीं था, बल्कि मौसम के उतार-चढ़ाव का सटीक रिकॉर्ड था। गांवों में बुजुर्गों के पास इस ज्ञान का खजाना था जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ता रहा।
आधुनिक पूर्वानुमान प्रणाली की शुरुआत
1875 में भारतीय मौसम विभाग (IMD) की स्थापना के साथ आधुनिक मौसम पूर्वानुमान की शुरुआत हुई। अंग्रेजों ने अकाल की भविष्यवाणी के लिए इसे बनाया था, पर धीरे-धीरे यह देश का महत्वपूर्ण विभाग बन गया।
शुरुआत में सिर्फ बेरोमीटर और थर्मामीटर जैसे बुनियादी उपकरण थे। 1920 के दशक में रेडियो संदेश की शुरुआत हुई, जिससे मौसम की जानकारी तेजी से फैलाना संभव हुआ।
आजादी के बाद IMD ने अपने नेटवर्क का विस्तार किया। 1960 के दशक में पहला मौसम रडार स्थापित हुआ जो मौसम पूर्वानुमान में क्रांतिकारी साबित हुआ।
डिजिटल युग में भारत पूर्वानुमान प्रणाली का विकास
1980 के दशक में कंप्यूटर आधारित मॉडलिंग ने पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाई। भारत ने अपने पहले मौसम उपग्रह INSAT की स्थापना की, जिसने चक्रवात और मानसून की निगरानी को मजबूत किया।
2000 के बाद से स्वचालित मौसम स्टेशन, डॉपलर रडार और सुपरकंप्यूटर के इस्तेमाल से पूर्वानुमान और भी सटीक हुआ। आज ‘मौसम’ ऐप से हर नागरिक अपने मोबाइल पर रीयल-टाइम अपडेट पा सकता है।
2021 में भारत ने “प्रहार” सुपरकंप्यूटिंग सिस्टम लॉन्च किया, जो प्रति सेकंड 6.8 पेटाफ्लॉप्स की गति से काम करता है। अब हम 10 दिन पहले तक का सटीक पूर्वानुमान दे सकते हैं।
वैश्विक मानकों के साथ तालमेल
भारत आज विश्व मौसम संगठन (WMO) का महत्वपूर्ण सदस्य है। हमारे वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय शोध में योगदान देते हैं और वैश्विक मानकों को अपनाते हैं।
2019 में भारत ने अपनी “ग्रिड पॉइंट स्टैटिस्टिकल” तकनीक विकसित की, जिसे अब कई देश इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारे चक्रवात पूर्वानुमान मॉडल की सटीकता 90% से ज्यादा है।
भारत अब दक्षिण एशिया के लिए क्षेत्रीय मौसम केंद्र के रूप में काम करता है और पड़ोसी देशों को भी मदद देता है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और बढ़ते चरम मौसम की घटनाएं हमारे लिए नई चुनौतियां पेश कर रही हैं, जिनसे निपटने के लिए लगातार नवाचार की जरूरत है।
भारत पूर्वानुमान प्रणाली के प्रमुख घटक
मौसम पूर्वानुमान प्रणाली
भारत में मौसम पूर्वानुमान तकनीक अब पहले से कहीं ज्यादा परिष्कृत हो गई है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अत्याधुनिक सुपरकंप्यूटर सिस्टम लगाए हैं जो हर छह घंटे में नए आंकड़े प्रोसेस करते हैं। ये सिस्टम मानसून की भविष्यवाणी से लेकर चक्रवाती तूफानों के ट्रैकिंग तक सब कुछ संभालते हैं।
याद है 2019 का फानी चक्रवात? IMD ने पांच दिन पहले ही सटीक चेतावनी दे दी थी। यही नहीं, 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवाओं का अनुमान भी बिल्कुल सही था।
कृषि उत्पादन पूर्वानुमान तंत्र
किसानों के लिए फसल पूर्वानुमान सिस्टम एक वरदान है। मौसम के साथ-साथ मिट्टी की नमी, कीट प्रकोप और फसल की स्थिति की निगरानी करने वाले सेंसर अब खेतों में लगे हैं। FASAL (फसल आकलन प्रणाली) मॉडल अब 80% से अधिक सटीकता के साथ उपज का अनुमान लगा सकता है।
एक किसान से सुना था – “पहले हम मौसम का अंदाजा लगाने के लिए आसमान को देखते थे, अब हम फोन पर ऐप देखते हैं। इससे हमें सही समय पर फसल लगाने में मदद मिलती है।”
आर्थिक पूर्वानुमान मॉडल
भारतीय रिज़र्व बैंक के DSGE (डायनामिक स्टोकेस्टिक जनरल इक्विलिब्रियम) मॉडल अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच जटिल संबंधों को समझते हैं। ये मॉडल महंगाई, GDP ग्रोथ और रोजगार के आंकड़ों का अनुमान लगाते हैं।
आज के मुश्किल दौर में, कंपनियां, निवेशक और सरकार – सभी इन मॉडलों पर भरोसा करते हैं। भारत का 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य इन्हीं पूर्वानुमानों पर टिका है।
जनसांख्यिकीय पूर्वानुमान
भारत की बढ़ती आबादी और उसकी जरूरतों का आकलन करना जरूरी है। NITI आयोग के मॉडल आने वाले दशकों में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और श्रम बाजार में बदलावों का अनुमान लगाते हैं।
2050 तक भारत की आबादी 1.7 अरब होने का अनुमान है। इसका मतलब है हमें अभी से स्कूल, अस्पताल और रोजगार के लिए तैयारी करनी होगी।
आपदा पूर्वानुमान और प्रबंधन
भारत की आपदा पूर्वानुमान प्रणाली ने पिछले कुछ सालों में कई जानें बचाई हैं। 2013 के फिलिन चक्रवात से पहले 9 लाख लोगों को सुरक्षित निकाला गया था।
अब AI और मशीन लर्निंग के साथ, बाढ़, भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं का पूर्वानुमान ज्यादा सटीक हो गया है। NDMA (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के पास अब रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम है जो मिनटों में अलर्ट जारी कर सकता है।
प्रौद्योगिकी का उपयोग और नवाचार
सुपरकंप्यूटर और उन्नत कम्प्यूटेशनल मॉडल
भारत में मौसम की भविष्यवाणी तकनीक में क्रांति आई है। और इसकी वजह? सुपरकंप्यूटर!
भारतीय मौसम विभाग ने हाल ही में ‘प्रत्यूष’ और ‘मिहिर’ नामक सुपरकंप्यूटर स्थापित किए हैं, जो प्रति सेकंड 6.8 पेटाफ्लॉप्स की गणना कर सकते हैं। कल्पना करो – एक सेकंड में 6,800,000,000,000,000 गणनाएँ! यही नहीं, ये कंप्यूटर 12 किमी रिज़ॉल्यूशन पर मौसम मॉडल चला सकते हैं, जबकि पहले यह क्षमता 25 किमी तक ही सीमित थी।
अगर आप सोच रहे हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है, तो जान लीजिए – इससे भविष्यवाणी की सटीकता में 30% का सुधार हुआ है!
| सुपरकंप्यूटर | क्षमता (पेटाफ्लॉप्स) | रिज़ॉल्यूशन |
|------------|-------------------|------------|
| प्रत्यूष | 4.0 | 12 किमी |
| मिहिर | 2.8 | 12 किमी |
| पुराना सिस्टम | 1.2 | 25 किमी |
ये सुपरकंप्यूटर अत्याधुनिक नैमेरिकल वेदर प्रेडिक्शन (NWP) मॉडल चलाते हैं, जैसे ग्लोबल फोरकास्ट सिस्टम (GFS) और यूनिफाइड मॉडल (UM)। इनके जरिए बादलों के बनने, हवा के पैटर्न और तापमान के बदलाव की बारीक मॉडलिंग संभव हो पाई है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का प्रभाव
AI और मौसम विज्ञान का मिलन एक गेम-चेंजर साबित हो रहा है।
आज भारत के मौसम विभाग ने डीप लर्निंग तकनीक अपनाई है, जो पिछले 50 सालों के मौसम डेटा से सीखकर भविष्य की भविष्यवाणियां बनाती है। AI मॉडल ऐसे पैटर्न पहचान लेते हैं जो मानव विश्लेषकों से छूट जाते हैं।
जब 2019 के चक्रवात फानी की बात आई, AI ने 5 दिन पहले ही इसके पथ की सटीक भविष्यवाणी कर दी थी। नतीजा? 12 लाख लोगों को सुरक्षित निकाला गया और हजारों जानें बचाई गईं।
मशीन लर्निंग अल्गोरिदम अब बरसात के मौसम, मानसून की गति और चक्रवातों के बारे में 85% तक सटीक जानकारी दे पाते हैं।
भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी और रिमोट सेंसिंग
क्या आपने कभी सोचा है कि मौसम विभाग इतनी सटीक जानकारी कैसे देता है? जवाब है – उपग्रह और रिमोट सेंसिंग।
भारत के INSAT-3D और INSAT-3DR उपग्रह हर 15 मिनट में पूरे उपमहाद्वीप की तस्वीरें खींचते हैं। इससे हमें बादलों की गति, समुद्री सतह का तापमान और वायुमंडलीय आर्द्रता की रीयल-टाइम जानकारी मिलती है।
देश भर में 1,200 से अधिक स्वचालित मौसम स्टेशन, 3,500 स्वैच्छिक अवलोकनकर्ता और 55 डॉप्लर रडार लगे हैं, जो हर मिनट डेटा भेजते रहते हैं।
जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) का उपयोग करके, इस डेटा को इंटरैक्टिव मानचित्रों पर प्रदर्शित किया जाता है, जिन्हें आम लोग भी स्मार्टफोन एप्स के माध्यम से देख सकते हैं।
रिमोट सेंसिंग तकनीक ने किसानों को फसल की पैदावार बढ़ाने, मछुआरों को सुरक्षित रहने और आपदा प्रबंधकों को बेहतर योजना बनाने में मदद की है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
कृषि क्षेत्र पर प्रभाव और लाभ
किसान भाई-बहनों के लिए मौसम का सटीक पूर्वानुमान वरदान से कम नहीं है। भारत फोरकास्टिंग सिस्टम ने फसल चक्र की योजना बनाने में क्रांति ला दी है।
याद करो वो दिन जब किसान आसमान देखकर बुआई का फैसला लेते थे? अब वे अपने मोबाइल पर 5-7 दिन पहले ही जान लेते हैं कि कब बारिश होगी, कब तेज धूप रहेगी।
इससे क्या-क्या फायदे हुए हैं?
- बीज बोने का सही समय तय होने से फसल की पैदावार 15-20% तक बढ़ गई है
- कीटनाशकों का छिड़काव सही समय पर होने से खर्च कम हुआ है
- सिंचाई की योजना बेहतर बनी है, पानी की बचत हुई है
- अचानक आने वाले तूफान या ओलावृष्टि से फसलों को बचाया जा सका है
एक छोटे किसान राजेश की कहानी देखें तो – “पिछले साल मौसम एप की चेतावनी से मैंने अपनी गेहूं की फसल की कटाई एक हफ्ते पहले कर ली। अगले दिन भारी बारिश हुई जिससे पूरे गांव की खड़ी फसल बर्बाद हो गई।”
व्यापार और उद्योग के लिए पूर्वानुमान का महत्व
बिजनेस की दुनिया में मौसम सिर्फ बातचीत का विषय नहीं, बल्कि पैसा बनाने या गंवाने का जरिया है।
कंपनियां अब मौसम डेटा के आधार पर ये फैसले लेती हैं:
- रिटेल स्टोर सीजनल इन्वेंटरी प्लानिंग (गर्मी में कूलर, बरसात में छाते)
- एनर्जी सेक्टर बिजली की मांग का अनुमान लगाकर उत्पादन नियोजित करता है
- ट्रांसपोर्ट कंपनियां अपने रूट और शेड्यूल बदलती हैं
- निर्माण उद्योग अपने काम की योजना मौसम के हिसाब से बनाते हैं
एक निर्यातक का अनुभव: “जहाज में माल लोड करने से पहले हम भारत फोरकास्टिंग सिस्टम से समुद्री तूफान की जानकारी लेते हैं। इससे न सिफ़र्फ माल सुरक्षित रहता है, बल्कि शिपमेंट डिले होने पर लगने वाले भारी जुर्माने से भी बचाव होता है।”
आंकड़े बताते हैं कि सटीक पूर्वानुमान से व्यापारिक क्षेत्र में हर साल लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान टलता है।
सामाजिक योजना और नीति निर्माण में भूमिका
सरकारी विभागों ने पूर्वानुमान को नीति निर्माण का अनिवार्य हिस्सा बना लिया है। यहां कुछ ठोस उदाहरण:
- शहरी नियोजन विभाग जल निकासी की व्यवस्था मॉनसून के पूर्वानुमान के आधार पर करता है
- जल संसाधन विभाग बांधों के पानी के प्रबंधन के लिए वर्षा के पूर्वानुमान का उपयोग करता है
- स्वास्थ्य विभाग मौसमी बीमारियों (डेंगू, मलेरिया) के प्रकोप से पहले ही तैयारी शुरू कर देता है
- कृषि विभाग फसल बीमा और सब्सिडी कार्यक्रमों की योजना बनाता है
राजस्थान के एक गांव में सूखे के पूर्वानुमान के बाद सरकार ने पहले से ही टैंकरों की व्यवस्था कर दी। नतीजतन, पिछली बार जैसी पानी की कमी और पलायन नहीं हुआ।
आपदा प्रबंधन और जीवन रक्षा
बात जब जान-माल की सुरक्षा की होती है, तब भारत फोरकास्टिंग सिस्टम की भूमिका अमूल्य हो जाती है।
2021 में तौकते चक्रवात के दौरान 96 घंटे पहले दी गई चेतावनी से 2 लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। नतीजतन, जानहानि बहुत कम हुई।
आपदा प्रबंधन में ये बदलाव आए हैं:
- हर जिले में त्वरित प्रतिक्रिया टीमें तैयार रहती हैं
- रेस्क्यू टीमों को पहले से तैनात किया जाता है
- अस्पतालों और आपातकालीन सेवाओं को अलर्ट किया जाता है
- बाढ़ वाले इलाकों में पहले से निकासी योजना बनाई जाती है
मछुआरों के लिए भी ये सिस्टम वरदान साबित हुआ है। अब वे समुद्र में जाने से पहले मौसम की जानकारी लेते हैं, जिससे उनकी जान बचती है।
चुनौतियां और भविष्य के अवसर
A. डेटा गुणवत्ता और विश्वसनीयता के मुद्दे
भारत पूर्वानुमान प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है सटीक डेटा का अभाव। हमारे देश में अभी भी कई दूरदराज के क्षेत्रों में मौसम स्टेशन नहीं हैं। इसका मतलब है कि हम अक्सर अनुमानों पर निर्भर रहते हैं, जो कभी-कभी गलत साबित होते हैं।
सच्चाई यह है कि पुराने उपकरण और कम संख्या में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन सटीक भविष्यवाणियों को मुश्किल बनाते हैं। जब आप गांव में रहते हैं और आपको फसल बोने का निर्णय लेना होता है, तो गलत मौसम की जानकारी आपकी पूरी आजीविका को प्रभावित कर सकती है।
B. प्रौद्योगिकी पहुंच और डिजिटल विभाजन
आज भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है, लेकिन डिजिटल विभाजन अभी भी एक बड़ी समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को अक्सर मौसम की जानकारी समय पर नहीं मिलती।
स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच सीमित होने के कारण, कई लोग मौसम एप्लिकेशन का उपयोग नहीं कर पाते। उन्हें अभी भी रेडियो या टीवी पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे व्यक्तिगत स्थान के लिए विशिष्ट पूर्वानुमान प्राप्त करना मुश्किल होता है।
C. जलवायु परिवर्तन और अनिश्चित परिस्थितियों का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन ने मौसम के पैटर्न को अप्रत्याशित बना दिया है। अब बारिश का समय बदल गया है, तापमान अधिक चरम पर पहुंच रहा है, और चक्रवात पहले से अधिक तीव्र हो रहे हैं।
ये बदलाव पारंपरिक पूर्वानुमान मॉडल को चुनौती देते हैं। जब मौसम के पैटर्न ही बदल जाएं, तो पिछले आंकड़ों पर आधारित भविष्यवाणियां कम उपयोगी हो जाती हैं। हमें नए मॉडल और तकनीकों की आवश्यकता है जो इन अनिश्चितताओं को समझ सकें।
D. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ज्ञान साझाकरण के अवसर
भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि दुनिया भर के देश मौसम पूर्वानुमान में सहयोग कर रहे हैं। जापान, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देश अपनी तकनीक और ज्ञान साझा कर रहे हैं।
इससे हमें सीखने का मौका मिल रहा है। उदाहरण के लिए, जापान के उपग्रह भारत को चक्रवात की निगरानी में मदद कर रहे हैं। ये साझेदारियां हमारी पूर्वानुमान क्षमताओं को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण हैं। अगर हम इन अवसरों का लाभ उठा सकें, तो भारत की पूर्वानुमान प्रणाली दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों में से एक बन सकती है।

भारत पूर्वानुमान प्रणाली ने अपने प्रारंभिक चरणों से लेकर आज के उन्नत डिजिटल युग तक लंबी यात्रा तय की है। आधुनिक प्रौद्योगिकी और नवाचारों के साथ मिलकर, यह प्रणाली अब मौसम, फसल उत्पादन, आपदा प्रबंधन और कई अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था और समाज को अभूतपूर्व लाभ मिल रहे हैं।
हालांकि चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं, लेकिन भविष्य के अवसर अपार हैं। हमें अपनी पूर्वानुमान प्रणाली को और अधिक सटीक, समावेशी और सुलभ बनाने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। आइए हम सभी मिलकर भारत पूर्वानुमान प्रणाली को अगले स्तर तक ले जाने में योगदान दें, ताकि हम एक अधिक सुरक्षित, स्थिर और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकें।
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