भारत–अमेरिका व्यापार तनाव: टैरिफ वॉर से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?
परिचय: व्यापार तनाव की पृष्ठभूमि
अगस्त 2025 में अमेरिकी सरकार ने भारत पर न केवल 25% “प्रतिशोधात्मक” टैरिफ लगाया, बल्कि बाद में “रूस से तेल खरीदने” के कारण अतिरिक्त 25% और जोड़ा।भारत-अमेरिका व्यापार तनाव 2025 इस तरह कुल टैरिफ दर 50% तक पहुँच गई। यह किसी भी बड़े व्यापारिक साझेदार पर लगाए गए उच्चतम टैरिफों में से एक है। इस कदम को एक तरह से व्यापारिक प्रतिशोध और राजनीतिक दबाव दोनों का मिश्रण माना जा रहा है।
1. प्रभावित क्षेत्र और आकार
प्रमुख निर्यात क्षेत्र
भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले कई उत्पाद जैसे कपड़ा, ज्वेलरी, लेदर, झींगा (श्रीम्प), और हस्तशिल्प सीधे प्रभावित हुए हैं। ये श्रम-गहन उद्योग हैं जिनमें लाखों लोग कार्यरत हैं। 50% टैरिफ लगने के कारण इनका वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाएगा।
सरकारी अनुमानों के अनुसार, यह टैरिफ लगभग 48 अरब डॉलर के निर्यात मूल्य को प्रभावित कर सकता है।
अनुमान है कि प्रभावित क्षेत्रों में निर्यात मात्रा 66% तक घट सकती है, जिससे भारत का निर्यात $60 अरब से घटकर लगभग $18-20 अरब तक सिमट सकता है।
कुल निर्यात और GDP पर प्रभाव
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है—लगभग $87 अरब मूल्य का। टैरिफ के कारण यह हिस्सा बुरी तरह प्रभावित होगा।
निर्यात में इस भारी गिरावट से भारत की GDP में लगभग 0.5% से 1% तक की कटौती हो सकती है।
Nomura जैसी संस्थाओं ने FY26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर को घटाकर 6% तक कर दिया है, जबकि पहले इसका अनुमान 6.5%-7% के बीच था।
वित्तीय और मुद्रा प्रभाव
व्यापार तनाव का असर भारतीय रुपया पर भी पड़ा है। अगस्त 2025 के अंत तक रुपया ₹88.33 प्रति डॉलर तक कमजोर हो गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है।
विदेशी निवेशकों ने केवल तीन दिनों में $2.4 अरब की पूंजी भारतीय बाज़ार से निकाल ली।
2. सामाजिक एवं रोजगार प्रभाव
टैरिफ का असर सीधे आम लोगों पर भी पड़ रहा है।
- कपड़ा, रत्न-आभूषण, समुद्री उत्पाद और लेदर उद्योग में सैकड़ों हज़ारों नौकरियाँ खतरे में हैं।
- सबसे ज़्यादा दबाव छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) पर है, जो कम पूंजी और सीमित संसाधनों के कारण ऐसे झटकों को सहन करने में सक्षम नहीं हैं।
- बेरोजगारी दर बढ़ने की आशंका है और ग्रामीण इलाकों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है क्योंकि इनमें से कई उद्योग गाँवों और छोटे कस्बों से जुड़े हैं।
3. सरकार की प्रतिक्रिया और राहत उपाय
GST सुधार
सितंबर 2025 में सरकार ने GST ढाँचे को सरल बनाकर दो दरों (5% और 18%) में बदल दिया।
- कई आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को कर-मुक्त या कम दर वाली श्रेणी में डाला गया।
- AC, छोटे कार, और बीमा जैसी चीजों पर कर में कमी की गई।
- यह बदलाव नवरात्र से पहले 22 सितंबर से लागू हुआ, जिससे त्योहारों के सीजन में घरेलू खपत को बढ़ावा मिला।
घरेलू खपत को बढ़ावा
GST कटौती से घरेलू सामान सस्ता हुआ, जिससे परिवारों की क्रय-शक्ति में इज़ाफा हुआ।
इससे ग्रामीण और शहरी दोनों उपभोक्ताओं की मांग में सुधार देखने को मिला, जो आंशिक रूप से निर्यात में आई गिरावट की भरपाई कर सकता है।
निर्यात बाज़ारों का विविधीकरण
भारत ने यूरोप, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर निर्यात बढ़ाने के प्रयास तेज़ किए हैं।
साथ ही निर्यातकों को सस्ते ऋण और वित्तीय प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं ताकि वे नए बाज़ार खोज सकें।
CFO और उद्योग जगत की रणनीति
भारत के बड़े उद्योग समूहों और CFOs ने इस संकट को “रणनीतिक पुनर्संतुलन” का अवसर माना है।
वे आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) को मज़बूत करने, नए बाज़ारों में प्रवेश करने और घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं।
4. दीर्घकालिक रणनीतियाँ और गहराई से सोच
आर्थिक संरचना में बदलाव
भारत “आत्मनिर्भर भारत” और “मेक इन इंडिया” जैसे अभियानों के माध्यम से घरेलू उत्पादन क्षमता को मज़बूत कर रहा है।
यह पहल भारत को दीर्घकाल में चीन के विकल्प के रूप में स्थापित करने में मदद कर सकती है।
वैश्विक कूटनीतिक एवं रणनीतिक संबंध
अमेरिका के इस कदम ने भारत को मजबूर कर दिया है कि वह रूस, चीन, और BRICS जैसे समूहों के साथ अपने रिश्तों को और मज़बूत करे।
यूरोप और एशिया के अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।
5. संभावित परिदृश्य और भविष्य
परिदृश्य | विवरण |
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संक्षिप्त राहत | यदि टैरिफ अस्थायी साबित होते हैं, तो भारत की GDP पर प्रभाव केवल 0.5–0.6% तक रहेगा। GST सुधार और घरेलू मांग से अर्थव्यवस्था संतुलित हो सकती है। |
दीर्घकालिक तनाव | यदि 50% टैरिफ FY26–FY27 तक बने रहते हैं, तो GDP में 1% से अधिक गिरावट, लाखों नौकरियों का नुकसान और निर्यात बाज़ार हिस्सेदारी का स्थायी ह्रास संभव है। |
विविध मार्केट और आत्मनिर्भरता | नए निर्यात बाज़ारों और आत्मनिर्भर उत्पादन पर जोर देकर भारत दीर्घकाल में स्थिरता हासिल कर सकता है। |
राजनीतिक और रणनीतिक पुनर्संतुलन | इस संकट से भारत की वैश्विक भूमिका बदल सकती है और दक्षिण–दक्षिण सहयोग तथा एशियाई साझेदारियाँ अधिक मजबूत हो सकती हैं। |
निष्कर्ष
भारत–अमेरिका व्यापार तनाव के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को झटके का सामना करना पड़ रहा है।
- तत्काल असर: निर्यात में गिरावट, रुपया कमजोर, MSMEs पर संकट और रोजगार पर खतरा।
- सरकारी कदम: GST सुधार, घरेलू खपत को प्रोत्साहन, निर्यातकों के लिए राहत पैकेज और बाज़ार विविधीकरण।
- दीर्घकालीन दृष्टिकोण: आत्मनिर्भरता, नए वैश्विक साझेदारी मॉडल और आर्थिक पुनर्संतुलन।
यदि टैरिफ अल्पकालिक साबित होते हैं तो भारत आसानी से इस संकट से निकल सकता है। लेकिन यदि यह प्रवृत्ति लंबी चलती है तो GDP और रोज़गार पर स्थायी चोट संभव है। इसीलिए भारत को अब व्यापार नीति, कूटनीति और घरेलू सुधारों पर एक साथ काम करना होगा।