गणेश चतुर्थी गणेश पूजा 2025: महत्व, विधि और शुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी 2025 आने वाली है और भक्त गणपति बप्पा के स्वागत की तैयारी में जुट गए हैं। यह त्योहार सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है जो पूरे देश को एकजुट करता है।
यह गाइड उन सभी भक्तों के लिए है जो गणेश चतुर्थी गणेश पूजा 2025 को पूरी श्रद्धा और सही विधि से मनाना चाहते हैं – चाहे आप पहली बार गणेश स्थापना कर रहे हों या सालों से यह परंपरा निभा रहे हों।
हम आपको 2025 के शुभ मुहूर्त और सटीक तिथियां बताएंगे जो आपकी पूजा को और भी फलदायी बनाएंगी। आप गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन तक की संपूर्ण विधि सीखेंगे, जिसमें दैनिक पूजा के नियम और गणपति बप्पा को प्रिय भोग भी शामिल है। हर कदम को आसान भाषा में समझाया गया है ताकि आप बिना किसी परेशानी के इस पवित्र त्योहार का आनंद उठा सकें।
गणेश चतुर्थी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
भगवान गणेश की पूजा से मिलने वाले आध्यात्मिक लाभ
भगवान गणेश की उपासना करने से भक्तों को अनेक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। गणेश जी की नियमित पूजा-अर्चना से मन में शांति आती है और नकारात्मक विचारों का नाश होता है। ध्यान और एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों पर बेहतर फोकस कर सकता है। गणपति की कृपा से बुद्धि का विकास होता है और सही निर्णय लेने की क्षमता मिलती है।
आध्यात्मिक रूप से गणेश जी की पूजा करने वाले भक्तों का मानसिक संतुलन बना रहता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में सकारात्मकता आती है। गणेश मंत्रों का जाप करने से मन की चंचलता कम होती है और आंतरिक शुद्धता प्राप्त होती है।
विघ्न हर्ता गणपति की कृपा से जीवन में सफलता
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है क्योंकि वे सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करते हैं। नई शुरुआत करते समय गणेश जी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। व्यापार, नौकरी, शिक्षा या किसी भी नए काम की शुरुआत से पहले गणपति की आराधना करने से सफलता मिलती है।
गणेश जी की कृपा से निम्नलिखित क्षेत्रों में सफलता मिलती है:
- शिक्षा में उन्नति: छात्रों को अध्ययन में एकाग्रता और स्मृति शक्ति मिलती है
- व्यापारिक सफलता: व्यापार में बाधाएं दूर होती हैं और लाभ प्राप्त होता है
- नौकरी में प्रगति: करियर में आने वाली समस्याओं का समाधान मिलता है
- पारिवारिक खुशी: घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है
परिवारिक एकता और सामुदायिक भावना का विकास
गणेश चतुर्थी का त्योहार परिवारिक एकता को मजबूत बनाता है। पूरा परिवार मिलकर गणेश जी की स्थापना, पूजा और विसर्जन में भाग लेता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी की सक्रिय भागीदारी होती है। इस दौरान पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं और प्रेम-सद्भावना बढ़ती है।
सामुदायिक स्तर पर गणेश उत्सव एक महत्वपूर्ण सामाजिक गतिविधि है। मोहल्ले और समुदाय के लोग मिलकर सार्वजनिक गणेश पंडाल बनाते हैं। इससे लोगों में सहयोग की भावना विकसित होती है और सामाजिक एकता बढ़ती है। विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एक साथ आकर इस उत्सव को मनाते हैं, जिससे भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
भारतीय परंपरा में गणेश चतुर्थी का ऐतिहासिक स्थान
गणेश चतुर्थी का त्योहार भारतीय संस्कृति में सदियों से मनाया जा रहा है। प्राचीन धर्मग्रंथों में भी गणेश पूजा का उल्लेख मिलता है। मराठा साम्राज्य के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस त्योहार को राज्य स्तर पर मनाना शुरू किया था।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को सामाजिक एकता का माध्यम बनाया। उन्होंने सार्वजनिक गणेश पंडालों की शुरुआत की, जिससे लोग एकजुट होकर देशप्रेम की भावना विकसित कर सकें। इस प्रकार यह त्योहार न केवल धार्मिक बल्कि राष्ट्रीय चेतना का भी प्रतीक बन गया।
आज भी गणेश चतुर्थी भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग है जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है।
2025 में गणेश चतुर्थी के शुभ मुहूर्त और तिथियां
गणेश चतुर्थी की सटीक तारीख और समय
2025 में गणेश चतुर्थी 27 अगस्त, बुधवार को मनाई जाएगी। चतुर्थी तिथि 26 अगस्त की रात 11:18 बजे से शुरू होकर 27 अगस्त की रात 10:43 बजे तक रहेगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्री गणेश जी का जन्म हुआ था।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त
गणेश जी की मूर्ति की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा के लिए 27 अगस्त को सुबह 11:07 बजे से दोपहर 1:34 बजे तक का समय सबसे शुभ माना गया है। इस दौरान अभिजीत मुहूर्त का लाभ भी मिलता है। दोपहर बाद 3:45 से शाम 6:12 बजे तक का समय भी प्राण प्रतिष्ठा के लिए अनुकूल है।
प्राण प्रतिष्ठा की विधि में गणेश मूर्ति को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित करना चाहिए। इस समय चंद्र दर्शन से बचना आवश्यक है क्योंकि यह अशुभ माना जाता है।
पूजा के लिए शुभ समय और नक्षत्र
गणेश पूजा के लिए सुबह 6:30 से 8:45 बजे तक का ब्रह्म मुहूर्त सबसे उत्तम है। इसके अतिरिक्त सुबह 10:15 से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4:20 से 6:50 बजे तक का समय भी पूजा-अर्चना के लिए शुभ माना गया है।
2025 में गणेश चतुर्थी के दिन हस्त नक्षत्र का योग बन रहा है, जो गणेश पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र में की गई पूजा से विशेष फल प्राप्त होता है।
विसर्जन के लिए अनुकूल दिन और समय
गणेश विसर्जन के लिए अनेकों तिथियां शुभ मानी गई हैं:
- 1.5 दिन (दूसरे दिन): 28 अगस्त, सुबह 7:00 से 11:00 बजे
- 3 दिन: 29 अगस्त, दोपहर 2:00 से शाम 5:00 बजे
- 5 दिन (पंचमी): 31 अगस्त, सुबह 9:00 से दोपहर 1:00 बजे
- 7 दिन (सप्तमी): 2 सितंबर, शाम 4:00 से 7:00 बजे
- 11 दिन (एकादशी): 6 सितंबर, सुबह 8:00 से दोपहर 12:00 बजे
अनंत चतुर्दशी (10 सितंबर) को सबसे मुख्य विसर्जन माना जाता है। इस दिन शाम 5:30 से रात 8:00 बजे तक विसर्जन का शुभ समय है।
राहुकाल और अशुभ समय से बचाव
गणेश चतुर्थी के दिन राहुकाल दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक रहेगा। इस समय में गणेश स्थापना या कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
बचने योग्य समय:
- भद्रा काल: रात 10:43 बजे के बाद (28 अगस्त तक)
- चंद्र दर्शन: पूरे दिन वर्जित
- यमगंड काल: सुबह 7:30 से 9:00 बजे
- गुलिक काल: दोपहर 3:00 से 4:30 बजे
इन समयों में पूजा-पाठ से बचकर शुभ मुहूर्त में ही गणेश स्थापना और पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
गणेश स्थापना की संपूर्ण विधि और नियम
घर में गणपति की मूर्ति स्थापना के सरल चरण
घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करना एक पावन कार्य है जो सही विधि से करना जरूरी है। सबसे पहले अपने घर के उत्तर-पूर्व दिशा में एक स्वच्छ स्थान चुनें। यहाँ एक सुंदर चौकी या मंच तैयार करें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।
मूर्ति स्थापना से पहले पूरे घर की सफाई करें और स्थापना स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। गणेश जी की मूर्ति को धीरे-धीरे चौकी पर रखें और उनका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। मूर्ति के आस-पास रंग-बिरंगे फूल, आम के पत्ते और मोगरे की माला से सजावट करें।
स्थापना के समय पूरे परिवार को मिलकर “गणपति बप्पा मोरया” का जयकारा लगाना चाहिए। मूर्ति के सामने दीप जलाएं और धूप की सुगंध फैलाएं। स्थापना के बाद तुरंत प्राणप्रतिष्ठा करें जिससे मूर्ति में देवत्व आ जाए।
पूजा सामग्री की पूरी सूची और व्यवस्था
गणेश पूजा के लिए सभी आवश्यक सामग्री पहले से तैयार रखना बेहद जरूरी है। मुख्य सामग्री में शामिल है – दूर्वा घास, लाल फूल (विशेषकर जवाकुसुम), मोदक और लड्डू, नारियल, सुपारी, पान के पत्ते, कलावा, रोली, चावल, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), धूप-दीप, कपूर, और चंदन।
पूजा सामग्री | मात्रा | विशेष नोट |
---|---|---|
दूर्वा घास | 21 या 51 | हमेशा ताजी और हरी |
मोदक | 21 | गणेश जी का प्रिय भोग |
लाल फूल | 1 किलो | जवाकुसुम श्रेष्ठ |
नारियल | 1 पूरा | फोड़ने के लिए |
पान के पत्ते | 21 | सुपारी के साथ |
फल में केला, सेब, संतरा, अंगूर रखें। मिठाई के लिए मोदक के अलावा गुड़ के लड्डू भी रख सकते हैं। पूजा थाली में सभी सामान व्यवस्थित रूप से रखें और प्रत्येक दिन ताजी सामग्री का उपयोग करें।
मंत्र जाप और स्तुति पाठ की सही विधि
गणेश पूजा में मंत्र जाप का विशेष महत्व है। मुख्य मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” है जिसका जाप 108 बार करना चाहिए। इसके अलावा “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥” श्लोक का पाठ भी अत्यंत फलदायी है।
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा करें। सबसे पहले गणेश जी को जल से स्नान कराएं, फिर चंदन का तिलक लगाएं। दूर्वा चढ़ाते समय “दूर्वांकुर नमो नमः” कहें और फूल चढ़ाते समय फूल के नाम के साथ नमस्कार करें।
गणेश अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करना सर्वश्रेष्ठ है। यदि समय की कमी है तो कम से कम “गजानन” के 21 नाम जरूर लें। आरती के समय पूरे मन से “जय गणेश देवा” का गान करें और कपूर जलाकर आरती उतारें। मंत्र जाप के दौरान मन में केवल गणेश जी का ध्यान रखें और सच्चे मन से उनसे अपनी मनोकामना करें।
गणेश पूजा के दैनिक अनुष्ठान और भोग
प्रतिदिन की आरती और पूजा का क्रम
गणेश जी की दैनिक पूजा का आरंभ प्रातःकाल स्नान के बाद किया जाना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं और फिर स्वच्छ वस्त्र अर्पित करें। दीप जलाकर धूप की सुगंध से वातावरण को पवित्र बनाएं।
पूजा का क्रम इस प्रकार है – पहले गणेश मंत्र का जाप करें, फिर षोडशोपचार पूजा करें जिसमें गंध, पुष्प, अक्षत, और नैवेद्य शामिल है। आरती के समय “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा” का गान करें। शाम की आरती में कपूर जलाकर पूरे परिवार के साथ भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है।
भगवान गणेश के प्रिय भोग और मिठाइयां
मोदक को गणेश जी का सबसे प्रिय भोग माना जाता है। इसके अलावा लड्डू, पेड़ा, खीर, और पूरन पोली भी अत्यंत प्रिय हैं। दूर्वा घास गणेश जी को अत्यधिक पसंद है और इसे अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
गणेश जी के प्रिय भोग:
भोग सामग्री | विशेषता | अर्पण का समय |
---|---|---|
मोदक | सर्वप्रिय मिठाई | प्रातः और संध्या |
दूर्वा | पवित्र घास | पूजा के दौरान |
गुड़ | प्राकृतिक मिठास | दैनिक भोग में |
चावल | अन्न का प्रतीक | नैवेद्य के रूप में |
केले का भोग भी अत्यंत शुभ माना जाता है। गुड़ और तिल के लड्डू, श्रीखंड, और आम की पन्ना भी गणेश जी को प्रिय हैं।
11 दिनों के उत्सव में विशेष पूजा विधान
गणेश चतुर्थी के 11 दिनों में प्रत्येक दिन का विशेष महत्व है। पहले दिन गणेश स्थापना के साथ प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। दूसरे दिन से नियमित पूजा-अर्चना का क्रम शुरू होता है।
दिनवार विशेष विधान:
- 1-3 दिन: स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा
- 4-7 दिन: दैनिक पूजा और व्रत
- 8-10 दिन: विशेष मंत्र जाप और हवन
- 11वां दिन: विसर्जन की तैयारी
सप्तमी के दिन गणेश जी के 21 नामों का जाप करना शुभ होता है। अष्टमी पर 32 नाम और नवमी पर 108 नामों का जाप करने से विशेष फल मिलता है। दशमी के दिन उपवास रखकर गणेश जी की विशेष आराधना की जाती है।
घर में उत्सव मनाने के पारंपरिक तरीके
घर में गणेश उत्सव मनाने के लिए सबसे पहले घर की साफ-सफाई करें और रंगोली बनाएं। पूजा कक्ष को फूलों और आम के पत्तों से सजाएं। परिवार के सभी सदस्यों को पूजा में भाग लेना चाहिए।
घरेलू उत्सव की विशेषताएं:
- सुबह-शाम नियमित आरती
- पारिवारिक भजन-कीर्तन
- पड़ोसियों को प्रसाद वितरण
- बच्चों के साथ गणेश कहानियां सुनाना
दोस्तों और रिश्तेदारों को घर बुलाकर आरती में शामिल करना शुभ होता है। महिलाएं मिलकर भजन गाती हैं और पुरुष ढोल-तबले के साथ कीर्तन करते हैं। प्रसाद के रूप में मोदक, लड्डू और पंचामृत का वितरण करना चाहिए। बच्चों को गणेश जी की कहानियां सुनाकर धार्मिक संस्कार देना परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गणेश विसर्जन की महत्वपूर्ण प्रक्रिया
विसर्जन से पहले की जाने वाली पूजा
गणेश विसर्जन से पहले की पूजा बेहद महत्वपूर्ण होती है। इस पूजा में सबसे पहले गणपति बप्पा से क्षमा मांगनी चाहिए कि यदि पूजा में कोई गलती हुई हो तो वे उसे माफ करें। मुख्य पूजा में गणेश जी को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और आरती अर्पित करनी चाहिए।
विशेष रूप से मोदक, लड्डू और गुड़ चावल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान “गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया” का जाप करना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों को गणेश जी से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
विसर्जन से पहले गणेश जी की प्रतिमा को हल्दी, कुमकुम और चंदन से सुशोभित करना चाहिए। इसके बाद उन्हें फूलों की माला पहनाकर और मिठाई का भोग लगाकर विदाई की तैयारी करनी चाहिए। अंत में सभी भक्तों को प्रसाद वितरित करना चाहिए।
पर्यावरण के अनुकूल विसर्जन के उपाय
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए गणेश विसर्जन करना जरूरी हो गया है। मिट्टी की प्राकृतिक प्रतिमा का चुनाव करना सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि यह पानी में आसानी से घुल जाती है और प्रदूषण नहीं फैलाती।
प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियों से बचना चाहिए क्योंकि ये पानी में नहीं घुलतीं और जल प्रदूषण का कारण बनती हैं। रासायनिक रंगों के बजाय प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना चाहिए जो हल्दी, चंदन और गेरू से बने हों।
घर में ही कृत्रिम तालाब बनाकर विसर्जन करना एक बेहतरीन विकल्प है। बड़े बर्तन या टब में पानी भरकर उसमें गणेश जी का विसर्जन किया जा सकता है। इससे नदियों और तालабों का प्रदूषण रुकता है। विसर्जन के बाद इस पानी को पौधों में डाला जा सकता है।
सामुदायिक विसर्जन में भाग लेते समय पर्यावरण संरक्षण के नियमों का पालन करना चाहिए। फूल, माला और अन्य सामग्री को अलग करके उनका सही तरीके से निपटान करना चाहिए।
विसर्जन के बाद घर की शुद्धिकरण प्रक्रिया
गणेश विसर्जन के बाद घर की संपूर्ण सफाई और शुद्धिकरण करना आवश्यक होता है। सबसे पहले जिस स्थान पर गणेश जी की प्रतिमा रखी गई थी, उस जगह को गंगाजल या साफ पानी से धोना चाहिए। इसके बाद उस स्थान पर गाय के गोबर का लेप लगाकर शुद्ध करना चाहिए।
पूजा में इस्तेमाल हुए सभी सामान जैसे कलश, थाली, दीप आदि को अच्छी तरह साफ करके रख देना चाहिए। पूजा स्थल को हल्दी, कुमकुम और चंदन से शुद्ध करना चाहिए। घर के मुख्य द्वार और खिड़कियों को खुला रखकर ताजी हवा आने देनी चाहिए।
धूप-दीप जलाकर पूरे घर में सुगंध फैलानी चाहिए। नमक को कोनों में छिड़ककर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना चाहिए। शुद्धिकरण के बाद घर में तुलसी का पौधा रखना और नियमित रूप से उसकी पूजा करना शुभ माना जाता है।
पूजा के फूल और माला को किसी पेड़ के नीचे डालना चाहिए, कचरे में नहीं फेंकना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और गणेश जी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

गणेश चतुर्थी सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी आस्था और परंपरा का अनमोल खजाना है। इस ग्यारह दिन के उत्सव में हम भगवान गणेश का स्वागत करते हैं और उनके साथ अपने घर को खुशियों से भर देते हैं। सही मुहूर्त में स्थापना, नियमित पूजा-अर्चना, और भक्ति भाव से किया गया विसर्जन हमारे जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाता है।
आगामी गणेश चतुर्थी 2025 में इन सभी विधि-विधानों का पालन करके आप भी गणपति बप्पा का आशीर्वाद पा सकते हैं। याद रखिए कि पूजा की सच्चाई मन की श्रद्धा में है, न कि केवल नियमों के पालन में। इस बार गणेश चतुर्थी को पूरे उत्साह के साथ मनाएं और अपने परिवार के साथ इस पावन अवसर का आनंद उठाएं।
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